जल प्रदूषण पर निबंध (Essay on Water Pollution in Hindi)

Photo of author
PP Team

जल प्रदूषण पर निबंध (Essay on Water Pollution in Hindi)- जल ही जीवन है या पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती जैसी ये पंक्तियाँ हमने कई बार सुनी हैं, पढ़ी हैं और जल प्रदूषण (Jal Pradushan) पर निबंध लिखते समय इनका इस्तेमाल भी किया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या अब तक हम इन पंक्तियों का सही अर्थ समझ पाए हैं। अगर समझ गए हैं, तो फिर क्यों आज भी भारत में माता के समान पूजी जानें वाली सबसे पवित्र नदी गंगा या बाकी नदियाँ प्रदूषित होती जा रही हैं। अगर जल से ही इस सृष्टि का उद्भव हुआ है और जल पीकर ही सभी प्राणी जीवित हैं, तो फिर क्यों भूतल से जल का स्तर कम होता जा रहा है। क्यों नदियाँ सूखती जा रही हैं और हमें पीने के लिए स्वच्छ जल प्राप्त नहीं हो पा रहा है। जल प्रकृति का वो बहुमूल्य धन है जिसकी रक्षा और उपयोग हमें भावी पीढ़ी के लिए भी सोचते हुए करना है।

जल प्रदूषण पर निबंध (Essay on Water Pollution in Hindi)

आप हमारे इस पेज से जल प्रदूषण पर निबंध हिंदी में (Essay on Water Pollution in Hindi), जल प्रदूषण प्रस्तावना, Pollution of Water in Hindi, जल प्रदूषण का कारण, जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव, जल प्रदूषण के उपाय आदि बातों के बारे में जान सकते हैं। इसके अलावा छात्र हमारे इस जल प्रदूषण निबंध (Jal Pradushan Nibandh) की मदद से स्कूल और कॉलजों में होने वाली जल प्रदूषण पर निबंध हिंदी में (Water Pollution Essay in Hindi) प्रतियोगिता में भाग भी ले सकते हैं और एक सुंदर लेख लिखकर अपनी लेखनी का प्रदर्शन कर सकते हैं। Jal Pradushan in Hindi Essay लिखते समय आप नीचे बताए गए बिंदुओं से भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हमारे इस water pollution in hindi और water pollution in hindi essay का मकसद लोगों में जल प्रदूषण के बारे में (about water pollution in hindi) और उसके प्रति जागरूकता फैलाना है। सरल और आसान शब्दों में जल प्रदूषण इन हिंदी (Jal Pradushan in Hindi) पर निबंध नीचे से पढ़ें।

जल प्रदूषण पर निबंध
Water Pollution Essay in Hindi

जल प्रदूषण पर निबंध प्रस्तावना

यह बात एकदम सही है कि अगर पृथ्वी पर जल ही नहीं होगा, तो जल के बिना सारे जगत में सब कुछ सूना-सूना हो जाएगा। जगत के सभी लोगों के लिए जल वो अनुपम धन है जिसे पीकर इस धरती पर सभी प्राणी, पशु-पक्षी और पेड़-पौधे जीवित हैं। प्राकृतिक चीज़ों जैसे- नदी, नहर, झील, सरोवर और समुद्र का सौंदर्य भी जल से ही जीवित है। यदि इन्हें जल ही नहीं मिलेगा, तो फिर इनकी सुंदरता का कोई अर्थ नहीं बचेगा। अगर हम इनकी सुंदरता को खोना नहीं चाहते, तो सबसे पहले हमें अपने जल को प्रदूषण से मुक्त कराना होगा। जल इस प्रकृति का वो सौन्दर्य रूप है, जिससे अन्न, फल, फूल और उपवन खिलते हैं, बादलों से अमृत के समान बरसात होती है और जल को बचाकर तथा इसका संरक्षण करके ही हम उसका सही इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि समय रहते इस बढ़ते हुए जल प्रदूषण की समस्या की ओर हमने ध्यान नहीं दिया, तो एक दिन ऐसा आएगा जब पूरा देश जल संकट का सामना कर रहा होगा।

यह निबंध भी पढ़ें-

पर्यावरण पर निबंधयहाँ से पढ़ें
प्रदूषण पर निबंधयहाँ से पढ़ें
वायु प्रदूषण पर निबंधयहाँ से पढ़ें
पर्यावरण प्रदूषण पर निबंधयहाँ से पढ़ें
जल प्रदूषण पर निबंधयहाँ से पढ़ें
ध्वनि प्रदूषण पर निबंधयहाँ से पढ़ें
मृदा प्रदूषण पर निबंधयहाँ से पढ़ें

जल प्रदूषण का अर्थ 

जल प्रदूषण की समस्या को जानने से पहले हमें जल प्रदूषण का अर्थ समझना बहुत ज़रूरी है। जब पानी के विभिन्न स्रोत जैसे नदी, झील, कुआँ, तालाब, समुद्र आदि में दूषित तत्व आकर मिल जाएं, तो उस स्थिति को हम जल प्रदूषण कहते हैं। यह दूषित और जहरीले तत्व प्राकृतिक और मानवीय कारणों की वजह से जल में जाकर मिल जाते हैं और जल को प्रदूषित बनाते हैं, जिस वजह से जल अपना प्राकृतिक गुण खो देता है। आसान शब्दों में इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जब हम किसी भी प्रकार के कचरे को सीधा जल में फैंक देते हैं, तो वह जल प्रदूषण पैदा करता है।

जल प्रदूषण क्या है?

अब हम जानते हैं कि जल प्रदूषण क्या है? ऐसे बाहरी पदार्थ जो जल में जाकर मिल जाते हैं और जल के प्राकृतिक गुणों को ऐसे परिवर्तित कर देते हैं कि फिर वो जल न तो पीने लायक रहता है और न ही हमारे किसी दूसरे काम का रहता है। इस तरह का जल हमारे स्वास्थ पर भी हानिकारक प्रभाव डालता है। प्रदूषित जल की उपयोगिता पहले से कम होने के कारण वह कम उपयोगी हो जाता है, इसी को हम जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या सबसे ज्यादा विकसित देशों में देखने को मिलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीने के पानी का PH लेवल 7 से 8.5 के बीच होना चाहिए। अगर देखा जाए, तो पानी में खुद ही साफ होने की क्षमता अधिक होती है, परंतु जब ज़रूरत से ज्यादा मात्रा में प्रदूषण पानी में घुल जाता है, तो फिर जल प्रदूषण होने लगता है। जल प्रदूषण तब होता है जब जल में जानवरों का मल, जहरीले औद्योगिक रसायन, घरों और कारखानों का कचरा, कृषि अपशिष्ट, तेल और तपिश जैसे पदार्थ जाकर मिल जाते हैं। इसी वजह से हमारे प्राकृतिक जल स्त्रोत जैसे झील, नदी, समुद्र, भूमिगत जल स्रोत आदि प्रदूषण का शिकार बन रहे हैं, जिसका मनुष्य और अन्य जीवों पर गंभीर और घातक प्रभाव पड़ रहा है।

जल प्रदूषण की परिभाषा 

जल प्रदूषण की समस्या पर अलग-अलग विचारकों और वैज्ञानिकों ने अपने-अपने शब्दों में परिभाषा दी है और अपने मत प्रस्तुत किए हैं। उन्हीं में से कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं, जैसे-

सी.एस. साउथविक् के अनुसार, “जब प्राकृतिक जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में मानव एवं प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा परिवर्तन होता है, तो उसे जल प्रदूषण कहते हैं।”

प्रो. गिलपिन के अनुसार, “मानवीय क्रियाओं से जब जल की भौतिक, जैविक एवं रासायनिक विशिष्टताओं में ह्रास हो रहा हो, तो उसे जल प्रदूषण कहते हैं।”

जल प्रदूषण के कारण 

जल प्रदूषण के मुख्य दो स्रोत होते हैं: 1. प्राकृतिक और 2. मानवीय।

  • जल प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत- जल में प्राकृतिक रूप से प्रदूषण कई अलग-अलग कारणों से होता है। खनिज पदार्थ, पौधों की पत्तियों, ह्यूमस पदार्थ, मनुष्य और जानवरों का मल-मूत्र आदि जब जल में जाकर मिल जाता है, तो प्राकृतिक रूप से जल प्रदूषण होता है। जब जल किसी जमीन पर जमा रहता है और उस जमीन में खनिज पदार्थ की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, तो वह खनिज फिर उस जल में मिल जाते हैं, जिसे जहरीले पदार्थ कहते हैं। यदि यह ज्यादा मात्रा में होते हैं, तो ये बहुत ही घातक और खतरनाक साबित हो सकते हैं। इसके अलावा निकिल, बेरियम, बेरीलियम, कोबाल्ट, माॅलिब्डेनम, टिन, वैनेडियम आदि पदार्थ भी जल में प्राकृतिक रूप से थोड़ा-थोड़ा मिल जाते हैं।
  • जल प्रदूषण के मानवीय स्रोत- जो अलग-अलग क्रियाएँ या गतिविधियाँ मनुष्य द्वारा की जाती हैं उससे कूड़ा-करकट, गंदा पानी और अन्य तरह के अपशिष्ट पदार्थ जल में जाकर मिल जाते हैं। इन पदार्थों के मिलने की वजह से जल प्रदूषित होने लगता है। ऐसे अपशिष्ट पदार्थ विभिन्न रूप में पैदा हो जाते हैं, जैसे घरेलू कचरा, मनुष्य का मल, औद्योगिक पदार्थ, कृषि पदार्थ आदि। प्राकृतिक स्रोतों से ज्यादा मानवीय स्रोत जल प्रदूषण का मुख्य कारण हैं।

जल प्रदूषण के प्रकार 

जल प्रदूषण के मुख्य तीन प्रकार हमारे सामने आते हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-

  1. भौतिक जल प्रदूषण- जब भौतिक जल प्रदूषण होता है, तो उसकी वजह से जो जल की गन्ध होती है, स्वाद होता है और ऊष्मीय गुण होते हैं उनमें बदलाव हो जाता है।
  2. रासायनिक जल प्रदूषण- जब रासायनिक जल प्रदूषण होता है, तो उसके कारण जल में अलग-अलग तरह के कई उद्योगों और अन्य स्रोतों से रासायनिक पदार्थ आकर मिल जाते हैं, जिस वजह से रासायनिक जल प्रदूषण होता है।
  3. जैविक जल प्रदूषण- जब जल में अलग-अलग तरह के रोग पैदा करने वाले जीव प्रवेश करते हैं और जल को इतना दूषित कर देते हैं कि वह जल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है, वो ही जैविक जल प्रदूषण कहलाता है।

जल प्रदूषण के प्रभाव 

जल प्रदूषण होने से हमारे सामने विभिन्न तरह के घातक परिणाम सामने आते हैं। अगर हम प्रदूषित जल पीते हैं, तो यह हमारे शरीर में अलग-अलग प्रकार की बीमारियाँ पैदा करेगा। पहले तो दूषित जल की वजह से गंभीर बीमारियों से सिर्फ गांव के लोग ही प्रभावित हो रहे थे लेकिन आज आलम ये है कि शहर के शहर भी इसकी चपेट में आते जा रहे हैं। यदि हम गलती से भी प्रदूषित जल का इस्तेमाल कर लेते हैं, तो इससे हमारे शरीर में अलग-अलग तरह की परेशानियाँ होना शुरू हो जाती हैं। शरीर की त्वचा खराब होने लग जाती है, जीन से जुड़ी बीमारी होने लग जाती है, मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होने लग जाता है और कभी-कभी तो उसकी मृत्यु तक भी हो जाती है।

जल प्रदूषण का प्रभाव मनुष्य के साथ-साथ जानवरों, पक्षियों और वनों पर भी देखने को मिल रहा है। प्रदूषित तत्वों के जल में मिलने की वजह से भारी मात्रा में जानवरों और पानी में रहने वाले जीवों की मौत के आंकड़े हर साल बढ़ते जा रहे हैं। जल में निवास करने वाली मछलियों के मरने से मछुआरों को अपना पेट पालना मुश्किल होता जा रहा है। उनकी आय का स्रोत खत्म होता जा रहा है। इसके अलावा जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव किसानों की आजीविका पर भी पड़ रहा है क्योंकि दूषित जल से कृषि योग्य भूमि नष्ट होती जा रही है, वन खत्म होते जा रहे हैं, जोकि एक गंभीर समस्या है। जब प्रदूषित जल किसी भी तरह की कृषि पैदा करने वाली भूमि पर से होकर गुजरता है, तो वह उस भूमि की उर्वरता को पूरी तरह से नष्ट कर देता है। अगर एक बार किसी कृषि भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है, तो उसे फिर से उपजाऊ बनाना बहुत मुश्किल होता है। अगर कोई किसान प्रदूषित जल से अपने खेतों की सिंचाई कर देता है, तो उसका दुष्प्रभाव उसे अपनी कृषि पर झेलना पड़ता है। इसकी वजह ये है कि जब गंदा जल सिंचाई के इस्तेमाल में लिया जाता है, तो भूमि पर ऐसे धातुओं के अंश मिल जाते हैं जो कृषि उत्पादन की क्षमता को कम कर देते हैं। जल प्रदूषण से पृथ्वी का पूरा चक्र ही बिगड़ जाता है।

जल प्रदूषण समस्या 

वर्तमान समय में जल प्रदूषण की समस्या बहुत बड़ी समस्या बनकर हमारे सामने खड़ी है। जिन नदियों, तालाबों और नहरों का पानी पीकर हम जिंदा रहते हैं, वो जल ही आज हमें गंभीर रूप से बीमार कर रहा है। गांवों और शहरों में करोड़ों लोग पीने के पानी की समस्या को झेल रहे हैं। जब कभी हमारे देश के वैज्ञानिक समुद्रों में परमाणु परीक्षण करते हैं, तो उस परीक्षण से समुद्र में ऐसे कण और पदार्थ मिले जाते हैं जो समुद्री जीवों, वनस्पतियों और हमारे पर्यावरण पर बुरा असर डालते हैं। इससे पृथ्वी का पर्यावरण पूरी तरह से असंतुलित हो जाता है।

कारखानों और बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ, रासायनिक तत्व और गर्म जल जब नदी या समुद्र में जाकर मिल जाते हैं, तो वह जल प्रदूषण को तो बढ़ाते ही हैं लेकिन वह पर्यावरण में गर्मी भी पैदा करते हैं। वातावरण गर्म होने की वजह से जीव-जंतु, पेड़-पौधे और वनस्पतियों की मात्रा घटने लग जाती है और इसकी वजह से जलीय पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ने लगता है। ऐसे ही यदि जल प्रदूषण बढ़ता रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर स्वच्छ जल के लिए लोगों को तरसना पड़ जाएगा। थोड़ा सा भी जल प्रदूषण बहुत बड़ी मात्रा में हम सभी के जीवन को प्रभावित करता है।

आज के आधुनिक युग में जल प्रदूषण किसी एक इंसान को नहीं बल्कि समूचे संसार को प्रभावित करने पर तुला हुआ है। जल प्रदूषण का प्रभाव भयंकर रूप से पूरे राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिये एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। हमारे देश में होने वाली दो तिहाई बीमारियों का कारण प्रदूषित जल है। नवजात शिशु से लेकर बड़े बुज़ुर्ग तक जल प्रदूषण का प्रभाव उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद ही हानिकारक है।

जल प्रदूषण से होने वाली बीमारियां  

जल प्रदूषण के लगातार बढ़ने से पूरी दुनिया में तरह-तरह की बीमारियाँ और महामारियाँ भी दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही हैं। कई ऐसी गंभीर और खतरनाक बीमारियां हैं जिसके कारण लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। ये बीमारियाँ मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी अपना शिकार बना रही हैं। उनके स्वास्थ्य पर इनका बुरा असर पड़ रहा है। जल प्रदूषण से होने वाली बीमारियों में शामिल हैं टाईफाइड, पीलिया, हैजा, गैस्ट्रिक, चर्म रोग, पेट रोग, दस्त, उल्टी, बुखार आदि। इन बीमारियों का गर्मी और बरसात के मौसम में फैलने का खतरा और भी ज़्यादा बढ़ जाता है। इन बीमारियों से बचने के लिए आप नीचे बताए गए उपायों का पालन ज़रूर करें।

जल प्रदूषण से बचने के उपाय

जल प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए और उसको कम करने के लिए हमें अपने-अपने स्तर पर हर संभव उपायों का पालन ज़रूर करना चाहिए, जैसे-

  • हमें अपने घर और गली-मोहल्लों के नालों और नालियों की नियमित रूप से साफ-सफाई करवानी चाहिए।
  • जल निकास के लिए पक्की नालियों की समुचित व्यवस्था करवानी चाहिए।
  • जो मल, घरेलू पदार्थ और कूड़ा-कचरा जमा हो जाता है, उसे जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए।
  • प्रदूषित जल को साफ बनाने के लिए लगातार अनुसंधान और बदलाव किए जाने चाहिए।
  • नदियों, कुओं, तालाबों आदि में कपडे़ धोने, अंदर घुसकर पानी लेने, पशुओं को नहलाने, मनुष्य के नहाने, बर्तनों को साफ करने जैसी क्रियाओं पर पूर्ण रूप से रोक लगा देनी चाहिए।  
  • कुओं, तालाबों और अन्य जल स्त्रोतों से मिलने वाले जल में समय-समय पर ऐसी दवा डाली जाए जिससे उसकी उपयोगिकता बढ़ जाए। 
  • जल प्रदूषण जैसी समस्या के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा की जाए। लोगों तक इसके कारणों, दुष्प्रभावों और रोकथाम के बारे में हर जानकारी पहुँचाई जाए।
  • लोगों को पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरणीय शिक्षा दी जाए।
  • सरकार द्वारा समय-समय पर तालाबों, नदियों, नालों आदि अन्य जल स्त्रोतों की नियमित रूप से जाँच, परीक्षण, साफ-सफाई और सुरक्षा करवाई जाए।
  • विभिन्न जनसंचार के माध्यमों द्वारा प्रचार-प्रसार करते हुए जल प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में सभी लोगों को बताया जाए।

जल प्रदूषण के निवारण

जल प्रदूषण का पूरी तरह से निवारण हम सभी को मिलकर करना होगा। इसके अलावा जल प्रदूषण के निवारण के लिए केंद्रीय बोर्ड का गठन केंद्रीय सरकार द्वारा जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 1974 की धारा 3 के तहत किया जाता है। जल प्रदूषण की गंभीर समस्याओं और घातक परिणामों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा जल-प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम की स्थापना सन् 1974 में की गई थी। इसके बाद एक और जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम सन् 1975 स्थापित किया गया। जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियमों में सरकार द्वारा समय-समय पर कई संशोधन और बदलाव किए गए जिनका उद्देश्य जल की गुणवत्ता में सुधार करते हुए उसे उपयोगी बनाना है।

निष्कर्ष 

जितनी तेजी से जल प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर पड़ रहा है। इसीलिए अब हम सभी को जागरूक होना होगा और अधिक-से-अधिक संख्या में आगे आकर जल प्रदूषण को खत्म करने के लिए काम करना होगा। ये प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि वह जल प्रदूषण से पृथ्वी को बचाने में अपना योगदान दे और दूसरों को बदलने से पहले वह अपने अंदर बदलाव लाए।

“जल ही जीवन है” जैसी लोकप्रिय पंक्ति निम्नलिखित कविता से ली गई है-

जल ही जीवन है
जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।

शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस
गन्ध रहित युत शब्द रूप रस
निराकार जल ठोस गैस द्रव
त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस
सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

भूतल में जल सागर गहरा
पर्वत पर हिम बनकर ठहरा
बन कर मेघ वायु मण्डल में
घूम घूम कर देता पहरा
पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

नदी नहर नल झील सरोवर
वापी कूप कुण्ड नद निर्झर
सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का
कल-कल ध्वनि संगीत मनोहर
जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

बादल अमृत-सा जल लाता
अपने घर आँगन बरसाता
करते नहीं संग्रहण उसका
तब बह॰बहकर प्रलय मचाता
त्राहि-त्राहि करता फिरता, कितना मूरख मन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

– शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

जल प्रदूषण से जुड़े पूछे जाने वाले सवाल- FAQ’s

People also ask

प्रश्न- जल प्रदूषण क्या है in Hindi?
उत्तर- जहरीले पदार्थ और दूषित कण जब झीलों, नहरों, नदियों, समुद्रों और दूसरे जल स्रोतों में आकर मिल जाते हैं, तो उससे जल प्रदूषित हो जाता है। ऐसे पदार्थ पीनी में नीचे जाकर बैठ जाते हैं और जमा हो जाते हैं, जिससे पानी में बीमारियाँ पनपने लग जाती हैं।

प्रश्न- जल प्रदूषण क्या है निबंध?
उत्तर- मानव जीवन में उपयोग किए जाने वाले जल में जब जहरीले प्रदूषक मिलकर उसे खराब कर देते हैं या पीने के पानी को मैला कर देते हैं, तो उसे ही जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण हमारे पर्यावरण के लिये बहुत ही हानिकारक है।

प्रश्न- जल प्रदूषण कैसे होता है?
उत्तर- जल प्रदूषण होने के मुख्य दो कारण होते हैं, पहला प्राकृतिक कारण और दूसरा मानवीय कारण। इसके अलावा जल में अलग-अलग तरह के हानिकारक पदार्थों के मिलने से भी जल प्रदूषण होता है।

प्रश्न- जल प्रदूषण क्या है जल प्रदूषण से होने वाली हानियां?
उत्तर- जल प्रदूषण से इंसान ही नहीं बल्कि जानवर भी प्रभावित होते हैं। प्रदूषित जल ना तो पीया जाता है और ना ही कृषि तथा उद्योगों के लिए उपयुक्त होता है। यह झीलों और नदियों की सुंदरता को भी कम करता है।

प्रश्न- जल प्रदूषण के स्रोत क्या है?
उत्तर- जहरीले पदार्थ, खनिज पदार्थ, पौधों की पत्तियों, ह्यूमस पदार्थ, मनुष्य और जानवरों का मल-मूत्र आदि जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं।

प्रश्न- जल प्रदूषण क्या है इसके बचाव के उपाय लिखिए?
उत्तर- जल प्रदूषण से बचने के लिए हमें नालों, कुओं, तालाबों और नदियों की समय-समय पर सफाई करवानी चाहिए और उन्हें गंदा नहीं करना चाहिए। इसके अलावा जल प्रदूषण से जुड़े सभी कानूनों का पालन करना चाहिए।

प्रश्न- जल प्रदूषण क्या है जल प्रदूषण के चार कारण बताइए?
उत्तर- रोज़ के घरेलू कार्यों जैसे- खाना पकाना, स्नान करना, कपड़े धोना, साफ-सफाई करना आदि के लिए जिन पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है, वो नालियों से होते हुए नदियों में जाकर मिल जाते हैं, जिससे जल प्रदूषण होता है।

प्रश्न- जल प्रदूषण से कौन कौन सी बीमारियां होती हैं?
उत्तर- जल प्रदूषण से हमें आमतौर पर लूज मोशन, डायरिया, डिसेंट्री, उल्टियां आदि जैसी कई गंभीर बीमारियां हो जाती हैं।

प्रश्न- नदियां प्रदूषित क्यों है?
उत्तर- जब मनुष्य द्वारा कूड़ा-कचरा, अपशिष्ट पदार्थ, कारखानों से निकलने वाला जहरीला रसायन आदि नदियों में गिराया जाता है, तो नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। सबसे ज़्यादा प्रदूषण गंगा नदी में होता है। 

अन्य विषयों पर निबंध पढ़ने के लिएयहाँ क्लिक करें

Leave a Reply